मस्कट (ओमान)। वैश्विक हिन्दी संस्थान परिकल्पना एवं मस्कट फाउंडेशन के संयुक्त तत्वावधान में ओमान की राजधानी मस्कट में आयोजित सम्मेलन में डॉ धीरेंद्र रांगड़ को सम्मानित किया गया। यह जानकारी देते हुए भारतीय साहित्य संगम भारत उत्तराखण्ड के प्रदेश अध्यक्ष मनोज कुमार गुप्ता आचार्य मनुश्री ने बताया कि हमारी संस्था के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ धीरेन्द्र रांगड को ओमान की राजधानी मस्कट में सम्मानित किया जाना पूरे राष्ट्र का सम्मान है ।
“रासायनिक और जैविक हथियारों के प्रयोग से मानवता पर होने वाला दुष्प्रभाव” विषय पर आयोजित सेमिनार में व्याख्यान प्रस्तुत करते हुए डॉ रांगड़ ने कहा कि रासायनिक हथियार, रासायनिक कारक होते हैं, चाहे वे गैसीय हों, तरल हों या ठोस, जिनका इस्तेमाल मनुष्यों, जानवरों और पौधों पर उनके सीधे विषाक्त प्रभाव के कारण किया जाता है। ये साँस के ज़रिए अंदर जाने, त्वचा के माध्यम से अवशोषित होने, या खाने-पीने की चीज़ों में घुलने पर नुकसान पहुँचाते हैं। रासायनिक कारक तब हथियार बन जाते हैं जब उन्हें तोपखाने के गोले, बारूदी सुरंगों, हवाई बमों, मिसाइल वारहेड्स, मोर्टार शेल्स, ग्रेनेड, स्प्रे टैंकों, या किसी भी अन्य माध्यम से निर्धारित लक्ष्यों तक पहुँचाया जाता है।
इस अवसर पर मुंबई, दिल्ली, उत्तराखंड, इलाहाबाद, लखनऊ, उड़ीसा, कोलकाता, मस्कट, निजवा आदि स्थानों से आए विद्वानों एवं साहित्यकारों डॉ रवींद्र प्रभात, डॉ मोइनुद्दीन मंसूरी, श्रीमती रौशनी, माला चौबे, रवि विजय मस्तराम, मोइन खान, भाविन दनगोदर, विस्मय रंजन राउत, निखिल शर्मा, डॉ बालकृष्ण पांडे, डॉ रमाकांत कुशवाहा कुशाग्र, कुसुम पाण्डेय आदि ने भी अपने-अपने विचार रखें।” परिकल्पना समय के प्रधान संपादक डॉ रवीन्द्र प्रभात ने कहा कि “जैविक हथियार, हथियारों के एक बड़े वर्ग का एक उपसमूह हैं जिन्हें कभी-कभी अपरंपरागत हथियार या सामूहिक विनाश के हथियार कहा जाता है, जिनमें रासायनिक, परमाणु और रेडियोलॉजिकल हथियार भी शामिल हैं। जैविक एजेंटों का उपयोग एक गंभीर चिंता का विषय है, और आतंकवादी हमलों में इन एजेंरों के इस्तेमाल का जोखिम बढ़ता जा रहा है।
परमाणु हथियार कार्यक्रम की लागत की तुलना में, जैविक हथियार बेहद सस्ते हैं। अनुमान है कि 1 ग्राम विष 1 करोड़ लोगों की जान ले सकता है। बोटुलिनम विष का शुद्ध रूप, सरीन नामक एक रासायनिक तंत्रिका कारक से लगभग 30 लाख गुना अधिक शक्तिशाली होता है। एक बार साँस लेने या निगलने के बाद, वे जल्दी से एसिटाइलकोलाइन को सिनैप्टिक क्लीफ़्ट में जमा होने देते हैं, जिससे मांसपेशियों में लगातार संकुचन होता है और संबंधित प्रभाव जैसे कि पुतली का सिकुड़ना, मरोड़, ऐंठन और सांस लेने में असमर्थता होती है। पीड़ित अप्रत्याशित रूप से मर जाते हैं।
डॉ बाल कृष्ण पांडेय ने कहा कि” जैविक और रासायनिक हथियार से हमें बचने की कोशिश करनी चाहिए क्योंकि यह मानवता के लिए खतरा है।” अपने अध्यक्षीय संबोधन में परिकल्पना संस्था की अध्यक्ष माला चौबे ने कहा कि “सैनिकों या नागरिकों को घायल करने या मारने के लिए रसायनों, जीवाणुओं, विषाणुओं, विषैले पदार्थों या ज़हरों के सैन्य प्रयोग को रासायनिक और जैविक युद्ध कहा जाता है। इस अवसर पर डॉ रामाकांत कुशवाहा कुशाग्र की पुस्तक “प्रिय लौट आओ” (गीत संग्रह) का लोकार्पण हुआ। अनेक वक्ताओं ने इसकी विशेषताओं पर प्रकाश डाले।
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