देहरादून नगर निगम में सामने आए वेतन फर्जीवाड़े का मामला अब कानून के घेरे में आ गया है। 99 फर्जी सफाई कर्मचारियों के नाम पर लगभग 9 करोड़ रुपये का वेतन पांच वर्षों तक उठाया गया। जनवरी 2024 में उजागर हुए इस घोटाले में सवा साल बाद जाकर FIR दर्ज हुई है। यह कार्रवाई हाईकोर्ट के निर्देश के बाद की गई है।
क्या है पूरा मामला?
नगर निगम ने वर्ष 2019 में 100 मोहल्ला स्वच्छता समितियाँ गठित की थीं। इन समितियों को क्षेत्रीय सफाई व्यवस्था और कर्मचारियों के वेतन भुगतान की जिम्मेदारी सौंपी गई। इसके लिए समिति के नाम पर बैंक खाते खोले गए, जिनमें नगर निगम द्वारा वेतन राशि ट्रांसफर की जाती थी।
जांच में पता चला कि 985 कर्मचारियों में से 99 पूरी तरह फर्जी थे।हर फर्जी कर्मचारी को औसतन ₹15,000 प्रतिमाह का वेतन दिया गया। इससे हर महीने लगभग ₹14.85 लाख और 5 वर्षों में कुल ₹8.91 करोड़ का नुकसान हुआ।
जातियों के नाम पर हुआ खेल
RTI से प्राप्त दस्तावेजों में खुलासा हुआ कि सफाई कर्मचारियों की सूची में ऐसे जातिगत उपनाम (सरनेम) शामिल थे, जो आमतौर पर सफाई कर्मचारी वर्ग से नहीं माने जाते, जैसे:
उन्याल, थपलियाल, सेमवाल, गुप्ता और अग्रवाल। इन नामों के जरिए फर्जी नियुक्ति दिखाकर वेतन निकाला गया।
हाईकोर्ट के दबाव में दर्ज हुई FIR
हालांकि यह मामला जनवरी 2024 में सामने आया था, लेकिन राजनीतिक हस्तक्षेप और प्रशासनिक चुप्पी के चलते कोई कार्रवाई नहीं हुई। अंततः अधिवक्ता विकेश नेगी द्वारा दायर जनहित याचिका पर उत्तराखंड हाईकोर्ट ने 23 मई 2025 को राज्य सरकार से जवाब तलब किया। इसके बाद नगर निगम हरकत में आया और उप नगर आयुक्त गौरव भसीन की तहरीर पर शहर कोतवाली में एफआईआर दर्ज कराई गई।
इनकी होगी जांच
FIR में मोहल्ला स्वच्छता समितियों के अध्यक्ष, सचिव और कोषाध्यक्ष की भूमिका की जांच शामिल है। क्योंकि सभी फर्जी कर्मचारियों की सूची पर इन्हीं के हस्ताक्षर मौजूद थे, जिससे वेतन भुगतान संभव हो सका।
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