चिट्ठियों के जमाने की याद दिलाता है विश्व डाक दिवस, एक लिफाफे में समाई होती थी भावनाओं की दुनिया।

ऋषिकेश : एक लिफाफा जिसमें किसी अपने की लिखावट, उनकी भावनाओं की गर्भाहट और दूरी के बावजूद नजदीकी का एहसास होता था।
डाकिया डाक लाया,  डाक लाया 
खुशी का पयाम ,कहीं दर्द नाम 
डाकिया डाक लाया।।
सुपरस्टार राजेश खन्ना की फिल्म का यह गाना तो आपने सुना ही होगा । साल 1977 में जब यह फिल्म रिलीज हुई उसे समय एक दूसरे की कुशल क्षेम से पूछने का यही सर्वोत्तम तरीका था  । एक चिट्ठी के इंतजार में दिनों , महीना निकल जाते थे  । फिर कहीं डाकिया दिख जाए तो पूछ पूछ कर उसे परेशान कर दिया जाता था । कि हमारी चिट्ठी आई या नहीं उस दौर में इनकी धमक थी । अब व्हाट्सएप और वीडियो कॉलिंग के दौर में इनको कौन पूछता है । हर साल 9 अक्टूबर को देश  में विश्व डाक दिवस मनाया जाता है ।

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