निर्विरोध चुनाव: लोकतंत्र की मिसाल या चुनौती? ग्राम डोभ केस स्टडी

  • चुनाव में जीत हासिल करना और निर्विरोध चुने जाने में अंतर है. एक चुनाव प्रक्रिया से गुजरता है दूसरा सबकी पसंद से निर्विरोध चुना जाता है
  • चुने जाने के बाद, बस्ता मिलने के बाद जिम्मेदारी फिर अहम हो जाती है, ग्राम डोभ में भी निर्विरोध चुने गए पूर्व सैनिक  सुरेन्द्र दत्त सुयाल 

देवप्रयाग: (मनोज रौतेला)  तृस्तरीय पंचायत  चुनाव इस महीने के अंत में हैं दो चरणों में होने हैं. ऐसे में पहले ही  प्रदेश भर से कई प्रधान निर्विरोध चुन लिए गए है. जिसे एक अच्छी प्रक्रिया कहा जा सकता है. लोकतंत्र में सबसे निचले स्तर पर लोकतंत्र की यही निशानी है. ग्राम सभा या ग्राम का प्रतिनिधि होता है. ऐसे में ग्राम डोभ के नए ग्राम प्रधान पूर्व सैनिक सुरेन्द्र दत्त सुयाल चुने गए हैं. सुयाल कई वर्षों तक EME रेजिमेंट में अपनी सेवाएँ देने के बाद बाद THDC ऋषिकेश से भी सेवानिवृत हैं.  उनके पिता भी सेना में थे.  उनका परिवार ऋषिकेश के 20 बीघा में भी रहता है. अपने गाँव से उन्हें शुरू से प्यार है इसलिए वे गाँव प्रायः आते जाते रहते हैं. सामाजिक कार्यों में वे बढ़ चढ़ कर शिरकत करते हैं. उसी भाव को उन्हूने ग्राम प्रधान बन कर अपने मन में  जीवन में लोगों की सेवा करने की ठानी. अब ग्रामीणों ने उन्हें आशीर्वाद दिया है.  सुयाल ने नेशनल वाणी (हिंदी) से बात करते हुए बताया, उनके कई योजनायें जो ग्राम सभा में करनी है. ऐसे में वे उन योजनाओं को पूरा करेंगे.मैंने अपना दृष्टि पत्र गाँव के लोगों के सामने रखा है. जिसे उन्हूने पसंद किया है. सुयाल का कहना है, मुझे कमाना नहीं नहीं है बल्कि मुझे सेवा करनी है अपने लोगों के लिए. पलायन आज चुनौती है.ऐसे में लोग गाँव में रहें. तरक्की करें. सुख सुविधाएँ उनको मिले…यही मेरी इच्छा है.


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